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बस चाय तक !, सीझन-2, भाग-24, नॉन स्टॉप राइटिंग चेलेन्ज 2022 भाग-47

बस चाय तक !, सीझन-2, भाग-24, नॉन स्टॉप राइटिंग चेलेन्ज 2022 भाग-47

 

गुरु और शिष्य की सत्यघटना

हेल्लो लेखनी,

आज भी एक अनोखे गुरु और शिष्य की सत्य घटना को लेकर आप के सामने प्रस्तुत हो रहा हु| जब तक चाय बन रही है तब तक आइये एक गुरु शिष्य का यादगार मिलन देखते है|

 

बी.जे. मेडिकल कोलेज के मेडिसिन विभाग  के इन्चार्ज डॉ सी. सी. डामोर साहेब का सुबह का राउण्ड का समय शुरू हो चूका था| उन के साथ चल रहे सब के सब सीनियर और जूनियर डॉक्टर्स, पोस्ट ग्रेज्युएटस, स्टूडन्ट्स, असिस्टंट प्रोफेसर्स सब के सब गभाराये हुवे थे| क्युकी डॉ साहब का विशाल ज्ञान और अनुभव इतना बड़ा था की किसी भी डॉक्टर को राउण्ड के वक्त कोई भी प्रश्न पूछ कर गभरा देते थे| फिर भी सब के सब उन के साथ राउण्ड में जुड़ने के लिए आतुर रहते थे| क्युकी डॉ डामोर साहब के साथ सीखने को बहुत मिल सकता था|

दूसरी मंजिल पर राउण्ड शुरू था और वहा तीसरी खटिया पर आकर डॉक्टर साहब रुके.....और एक बुजुर्ग पेशंट को देखते रहे|

 

बयासी साल के बुड्ढे....फिर भी भव्य माथा, बाल का कोई ठिकाना नहीं था, फटे हुवे कपडे और किसी अच्छे घर से ताल्लुक था उस बुजुर्ग का| ओल्ड इज गोल्ड की हिसाब से डॉक्टर साहब ने उस तेज बुजुर्ग जो विद्वान लग रहे थे उस की हिस्ट्री रेसिडेंट डॉक्टर से पूछ ली|

रेसिडेंट डॉक्टर ने बताया, “साहेब इन का नाम कृपाशंकर त्रिवेदी है| उम्र बयासी साल, दाहोद जिले के बाजू के गाव के बाहर बुखार और न्युमोनिया से त्रस्त ये बुजुर्ग बाहर गीरे हुवे मिले है| पता करने पर इतना मालुम हुवा है की वे निवृत शिक्षक है| चौबीस साल पहले निवृत हो चुके है| स्कुल प्रायवेट ट्रस्ट की थी और वहा पर पेन्शन की कोई सुविधा नहीं होने पर पेन्शन नहीं मिल रहा है| आय का कोई साधन नहीं होने पर यह बुजुर्ग उस गाव में भीख मांगकर अपना निर्वाह कर रहे थे|” एक श्वास में रेसिडेंट डॉक्टर ने पुरी हिस्ट्री बता दी|

“उस के फेमिली में कोई नहीं है ?” डॉ डामोर साहब ने प्रश्न किया और खुद भूतकाल में डूब गये|

बरसों पहले दाहोद गाम के बाजू में रामपुरा गाव में एक आदिवासी गरीब फेमिली रहा करता था| बाप शराबी होने से युवानी में ही लीवर खल्लास हो गया और मर चुका था| माता दिवालीबहन अपने एक मात्र बेटे जिस को वो प्यार से ‘चको बुलाती थी (60, 70 और 80 के दशक में गुजरात में और ख़ास कर के सौराष्ट्र में ‘चको’ या ‘चका पेट नेम बड़ा प्रख्यात हुवा करता था, हम जिसे हिन्दी में चिड़िया कहते है उस चिड़िया को गुजराती में ‘चकी’ कहा जाता है और मेइल चिड़िया को गुजराती में ‘चको’ कहा जाता है| गाव में ‘चका’ या ‘चको’ नाम होना आम बाते हुवा करती थी)|

दिवालीबहन पर अपने बेटे चका का पढ़ने और जीवन निर्वाह का बड़ा प्राण प्रश्न आ चूका था| रास्ते की साफ़ सफाई और लोगो के घर कपडे और बर्तन मांजने का कार्य करने पर दिवालीबहन जैसे तैसे कर के अपना और चका का निर्वाह कर रही थी| वैसे चका का मूल नाम था ‘चतुरभाई चीमनभाई डामोर यानी की आज की कहानी का हीरो डॉ. डामोर|

चकाभाई पढ़ने में काफी होशियार थे और 12 वी कक्षा में बोर्ड में 92 % से पास हुवे| समग्र जिले में प्रथम थे| लेकिन अब दिवालीबहन से काम नहीं हो पा रहा था| इसीलिए दिवाली बहन चका को पढ़ाई छोड़कर अपने काम में जुड़ जाने के लिए जोर दे रहे थे|

चकाभाई अपनी स्कुल के सभी शिक्षको के प्रिय थे और ख़ास कर के क्रुपाशंकर त्रिवेदी की कृपा उस पर विशेष थी| चकाभाई को मेरिट के हिसाब से एशिया की सब से बड़ी मेडिकल कोलेज ‘बी.जे. मेडिकल कोलेज’ में एडमिशन मिल रहा था| लेकिन मा के आग्रह के सामने चकाभाई दुविधा में थे|

त्रिवेदी साहब को जैसे ही पता चला तो वे चकाभाई के घर पहुचे दिवालीबहन को मनाने ने के लिए| उस जमाने में आदिवासी विस्तार में कीसी ब्राहमिन को देखना शायद बड़ी बात हुवा करती थी| पूरा आदिवासी विस्तार धीरे धीरे चकाभाई के घर के पास जमा हो गया|

त्रिवेदीसाहब ने दिवालीबहन को समजाया की आप चका को मेडिकल कोलेज में जाने की अनुमति दो और उसे डॉक्टर बनाइये|

उधर दिवालीबहन ने कहा,” साहब अब मुज से काम नहीं होता, मै उसे मेडिकल में पढ़ने के पैसे कहा से लाऊ ?”

त्रिवेदी साहब ने कहा, “बहन, आप उस की चिंता न करे, मै चका को मेरिट के आधार पर स्कोलरशिप दिलवाने की पुरी कोशिश करता हु|

और सच में त्रिवेदी साहब ने चकाभाई को स्कोलरशिप दिलवा दी और साथ साथ रहने और खाने पीने का प्रबन्ध भी करवा दिया| उतना ही नहीं बीच बीच में दिवालीबहन को भी मदद करते रहे|

चकाभाई पढ़लिख कर एम.डी. बन गये और बी.जी. मेडिकल कोलेज में ही आसिस्टन्ट प्रोफ़ेसर बन गया| उस के दुसरे ही साल दिवालीबहन ने दुनिया से अन्तिम विदाई ले ली| लेकिन जाते जाते कह गये की, “तु केवल त्रिवेदी साहब की कारण ही बड़ा साहब बना है| नहीं तो तु भी रोड की गंदकी ही साफ़ कर रहा होता| इसीलिए त्रिवेदी साहब का ऋण कभी नहीं भूलना|

बरसो के बाद चकाभाई बड़े साहब बन चुके थे डॉ डामोर और बरसो के बाद कुदरत ने क्या अजीब खेल खेला था की उसी होस्पिटल में आज त्रिवेदीसाहब मिले लेकिन किस हालात में और किस स्थिति में मिले ? डामोरसाहब की हाय निकल गई| लेकिन रेसिडेंट डॉक्टर के जवाब से डॉ डामोर फिर से वर्त्तमान में आ गये|

“साहब, इन की पत्नी का पिछले साल ही अवसान हो गया, इसीलिए अकेले है| उन का एकमात्र बेटा पढ़लिख कर डॉक्टर बनकर अमरीका चला गया और गोरी मेडम के साथ शादी कर ली है| अब उन का बेटा मातापिता और इन्डिया को भूल चुका है| 6 महीने तक घर का भाडा नहीं चुकाने पर इस बुजुर्ग को फुटपाथ पर ला के रख दिया है|” रेसिडेंट डॉक्टर ने आख़िरी जवाब भी दे दिया|

“ओके ओके... उन की अच्छे से अच्छी सारवार करना और उन्हें खाने पीने में कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिये, कपडे भी फटे हुवे है, यह लो हजार रुपये, दो जोड़ी कपड़ा ले लो और दूसरी भी कोई जरुरत हो तो मुज से बोल देना|” और डॉ डामोर ने रेसिडेंट डॉक्टर के हाथ में रुपये दे दिये| सब को बहुत आश्चर्य हो रहा था की साहब को इस ब्राहमिन के साथ क्या नाता हो सकता है| लेकिन कुछ रिश्तो को सब कहा समज पाते है?

शाम को 5 बजे साहेब का वोर्ड पर फोन आया, “तीसरे खटिया के मरीज को कैसा है?” सिस्टर तो गभरा गई |  उस ने तुरंत सभी रेसिडेंट डॉक्टर्स को बुला लिया| सभी समज गये की इस पेशंट के लिए साहब कभी भी आ सकते है| इसीलिए त्रिवेदी काका की सारवार में सभी दिल से मेहनत करने लगे और डामोर साहब की निगेहबानी और सभी के प्रयत्नों से त्रिवेदीकाका को केवल 6 दिनों में ही अच्छा हो गया| उधर त्रिवेदीकाका ने भी सूना था की डॉक्टर्स और नर्स सभी लोग काफी दयालु होते है और कभी कभी मानवता भी फुट फुट कर भरी होती है| लेकिन डामोर साहब क्यु इतनी माया रखते है यह उस की समज में नहीं आ रहा था|

सातवे दिन रेसिडेंट डॉक्टर ने कहा,” साहब, त्रिवेदी काका को छुट्टी देकर इसे भेजेंगे कहा ? उस का फेमिली या घर कुछ भी नहीं है|” इतना बोलकर बताया की कल त्रिवेदी काका को छुट्टी देनी होगी|

लेकिन दुसरे दिन डामोर साहब की पत्नी खुद ड्रायवर को लेकर सुबह 11 बजे जब सिविल में आई और जब त्रिवेदी काका को रजा मिली तब डामोर साहब खुद त्रिवेदी काका का हाथ पकड़कर बाहर जाने लगे तो सारा स्टाफ उन के पीछे दौड़कर मदद करने लगे| त्रिवेदी काका को तो बहुत शर्मिन्दगी महसूस हुई| पूरा वोर्ड सोच रहा था की यह गरीब ब्राहमिन बहुत नसीबदार है, लेकिन उन सब को कहा खबर थी की डामोर साहब तो पुराना ऋण चूका रहे थे|

इधर त्रिवेदी काका सोच रहे थे की इतने बड़े अहमदाबाद में, मै कौन सी फूटपथ पर रहूंगा और भीख मांगने के लिये कहा बैठूँगा ? यहाँ तो वैसे भी पुलिस बड़ा परेशान करती है| इसीलिए शायद यह डॉक्टर साहब मेरे लिए वृध्धाश्रम की व्यवस्था कर रहे लगते है| नीचे गाडी में बैठते समय त्रिवेदी काका से अंत में रहा नहीं गया तो केवल इतना पूछ पाये, “ डॉक्टर साहब आप की गाडी में मुजे कहा कहा जाना है?

इस वक्त तक रोका हूवा सस्पेन्स खोलते हुवे डॉ डामोर साहब ने कहा, “मास्तर साहब आप को याद है, आज से 30 साल पहले एक चका नाम का आदिवासी लडके की आप ने मदद करी थी| उन्हें डॉक्टर बनाया था| अब तो उस चका को ऋण उतारने का एक मौका तो दो| आप को मुझे अब से साहब नहीं, केवल ‘चका नाम से बुलाना है| और आज से आप को हमारे घर ही रहना है|

और चका को याद करते हुवे त्रिवेदी साहब बडे बडे आसुओ के साथ रो पड़े, “अरे चका, तु! इतना बड़ा साहब बन गया?” इतना बोलकर त्रिवेदी साहब ने डॉ डामोर को गले लगा लिया|

ऋण का भार उतरते ही डॉ डामोर साहब बिलकुल हल्का महसूस करने लगे| आज एकलव्य ने अपना अंगूठा काटकर गुरु द्रोंण को जो गुरुदाक्षिणा देकर जो खुशी महसूस की होगी उस से भी ज्यादा आनंद उसे हो रहा था| ऊपर के वोर्ड से सारे डॉक्टर्स, सिस्टर्स, और मरीज इन अनोखा गुरुशिष्य का अजोड मिलन को देख रहे थे|

एशिया की सब से बड़ी हॉस्पिटल के प्रोफ़ेसर पहली बार एक भीखारी मरीज को अपनी खुद की गाडी में बिठाकर अपने घर ले जा रहे थे|

तो दोस्तों यह थी एक गुरु शिष्य की अनोखी कहानी....आप सब को पसंद आई होगी| यह भी सत्य घटना है| चलिये अब हम चाय लेते है और फिर गुरुशिष्य को वंदन करते हुवे विदा लेते है....अलविदा दोस्तों...|

 

# नॉन स्टॉप राइटिंग चेलेन्ज 2022 भाग-47

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8 Comments

प्रिशा

26-Mar-2023 11:26 AM

बहुत सुंदर 👌

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PHOENIX

26-Mar-2023 01:48 PM

Thanks

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shweta soni

24-Mar-2023 11:05 AM

Very nice

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PHOENIX

24-Mar-2023 01:18 PM

Thanks

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अदिति झा

23-Mar-2023 12:23 AM

Nice 👍🏼

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PHOENIX

23-Mar-2023 08:30 AM

Thanks

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